SDSN मुंशीगंज ग्रामीण विद्यालय में कालातीत कौशल की कार्यशाला
“क्या मानव शरीर एक सुचालक है?” “क्या पत्तियाँ सुचालक हैं या कुचालक?” एक वैज्ञानिक की तरह सोचो, प्रयोग करो, और पता लगा लो! SDSN स्कूल के विद्यार्थियों ने ठीक यही किया, जब जुलाई में उन्होंने लंदन आधारित गैर-सरकारी संगठन, कालातीत जीवनकौशल के संस्थापक, अतुल पन्त, द्वारा आयोजित २१-वीं सदी के जीवनकौशल सीखने की कार्यशाला में भाग लिया.
विद्यार्थियों ने टेबलेट में भिन्न प्रकार की एनीमेशन बनाना भी सीखा और कई रोचक कहानियाँ रचीं. ऐसा कर उन्होंने न केवल जाना की टेबलेट का प्रयोग वो अपनी रचनात्मक सोच को विकसित करने के लिए किस प्रकार कर सकते हैं (२१वीं-सदी में रचनात्मक सोच एक अत्यंत आवश्यक जीवन कौशल बन गया है) उन्होंने यह भी समझा की किस प्रकार एनीमेशन पढ़ाई ज़्यादा रोचक बनाने के लिए भी प्रयोग में लाई जा सकती है.
विद्यार्थियों ने टेबलेट में वीडियो फिल्म बनाना भी सीखा और कई छोटी फिल्में बनाई जैसे अपने विद्यालय के बारे में, प्रधानाचार्य का इंटरव्यू, जीव-विज्ञानं का एक ट्यूटोरियल वीडियो इत्यादी. विद्यार्थियों ने यह भी सीखा की कैसे वो अपनी एनीमेशन या फिल्म में म्यूजिक डाल उसे और रोचक बना सकते हैं. उन्होंने कई और शिखा सम्बंधित apps की जानकारी भी हासिल की.
फिर बारी थी एक रोबोट को समझने की. उन्होंने जाना कि रोबोट में लगे अल्ट्रा-सोनिक और इंफ्रारेड सेंसर कैसे काम करते हैं और आने वाले दशकों में स्वचालित, बुद्धिमान मशीनें वैश्विक अर्थव्यवस्था का स्वरूप कैसे बदलेंगी.
छोटी कक्षा के विद्यार्थियों ने पानी की खाली बोतल में पहिये और गुब्बारा लगा गाड़ीयाँ बनायीं और प्रयोग कर जाना की उनकी गाड़ी ज़्यादा दूर (गुब्बारे में ज़्यादा हवा भर) और ज़्यादा तेज़ (दो गुब्बारे लगा) कैसे जाएगी. बड़ी कक्षाओं में यह बच्चे इसी प्रयोग के द्वारा न्यूटन के गति के तीन नियम (Newton’s Three Laws of Motion) सीख सकते हैं.
तीन दिन की कार्यशाला के दौरान प्रायोगिक प्रक्षिक्षण (hands-on learning) की विधि से विद्यार्थियों ने मज़े करते हुए बहुत कुछ सीखा.
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जब टेक्नोलॉजी में तेज़ प्रगति अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलती है, और बदलती अर्थव्यवस्था में रोज़गार के लिए आवश्यक कौशल उतनी ही तेज़ी से नहीं सीखाये जाते हैं, तो इसका परिणाम समाज में आर्थिक असामनता ही होता है. रोबोट, सेंसर, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, नैनो-प्रौद्योगिकी, जैव-प्रौद्योगिकी… प्रौद्योगिकी ने आज से पहले कभी भी वैश्विक परिदृश्य को इस तेज़ी से नहीं बदला है, इसीलिए Timeless Lifeskills संस्था ने मकसद साधा है – ‘भारत के ग्रामीण इलाकों के छात्रों को उन जीवन कौशल में निपुण बनाना जो कि २१वीं-सदी में सफलता और कल्याण के लिए अनिवार्य बन चुके हैं.’
यह संस्था तीन बुनियादी जीवन कौशल विकसित करने पर ध्यान देती है: ‘
- सीखने की ललक उत्प्रेरित करना, यानी शिक्षार्थियों की आंतरिक प्रेरणा को जागृत कर उन्हें जिज्ञासु बनाना ताकि वो स्वप्रेरित हो आजीवन सीखने के सक्षम बनें.
- शिक्षा में आत्म-निर्देशन, ताकी छात्र अपनी शिक्षा की जिम्मेदारी स्वयं पर लें और अपनी सोच को गहरा और स्वतन्त्र बना, आज इन्टरनेट इत्यादि पर उपलब्ध सभी संसाधनों का उपयोग कर खुद से सीखना सीखें.
- आत्म-बोध की तरफ रुझान विकसित करना ताकी युवा समझ पायें की मानव का जीवन सागर की लहरों पर तो वश नहीं परंतु उसका अपनी नाँव पर पूरा नियंत्रण है, इसलिए किसी भी परिस्थिति में, शारीरिक एवं मानसिक रूप से अपनी नाँव संभाल, वो आनंदमय और सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
इन तीन बुनियादी जीवन कौशल के अलावा, केवल इम्तेहान में ज़्यादा नंबर लाने के लिए रट्टा लगाने वाली पढ़ाई के विपरीत विद्यालय में भिन्न विषयों के अध्धयन के लिए आवश्यक सोच को सीखना (जैसे एक वैज्ञानिक की सोच एक इतिहासकार की सोच से अलग होती है और एक लेखक इन दोनों विशेषज्ञों से अलग तरह से सोचता है), समझ के साथ पड़ना, गहरी, स्वतंत्र और रचनात्मक सोच, जटिल समस्याएं सुलझा पाने की क्षमता, विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता, जोखिम उठाने की क्षमता, अनुकूलनशीलता और संवेदनशील सहकार्यता, यह कुछ और कालातीत जीवनकौशल हैं जिनको विकसित करने पर टाइमलेस लाइफस्किल्स ध्यान देती है.
इन सभी जीवनकौशल में निपुणता विद्यार्थियों को तेज़ी से बदलते भविष्य की चुनौतियों को सुनहरे अवसर में बदलने के योग्य बनाती है.