केवल परीक्षाओं के लिए सीखने से कहीं बेहतर है खेल-खेल में सीखना. सीखने की ये विधि कलप्ना और रचनात्मक सोच को विकसित करती है. कल्पना-शक्ति और रचनात्मक सोच २१वीं सदी में सफलता के लिए अनिवार्य जीवनकौशल हैं.
सीखने की ये विधि ध्यान में रखते हुए Timeless Lifeskills Foundation में इलेक्ट्रॉनिक्स सीखने का एक पाठ्यक्रम रचा है. अलग-अलग ऑनलाइन संसाधनों का विश्लेषण कर हमनें कुछ प्रयोग और प्रोजेक्ट्स का चयन किया है जिनको करने से विद्यार्थियों की विज्ञान, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, में रूचि बढ़ेगी.
हमारे पाठ्यक्रम में चौथी और पांचवीं के छात्र बहुत सरल रोबॉट का निर्माण करते हैं. ये सरल मशीनें कम्पन वाली मोटर और 3-वोल्ट की बटन बैटरी से बनती हैं. कम्पन की वजह से ये नाचती हैं और मस्त चित्र बनाती हैं. फिर चौथी और पांचवीं के छात्र नमक में गुंथे आटे से, जो एक सुचालक (conductor) का काम करता है, 3D आकृत्यियों का निर्माण करते हैं और इन आकृतियों में LED लाइट लगा कर उन्हें और सुंदर बनाते हैं.
छठी से आठवीं के छात्र इलेक्ट्रॉनिक पुर्ज़े जैसे बल्ब, मोटर, स्विच आदि से सरल परिपथ (circuit) का निर्माण करना सीख, पतले ताम्बे के टेप और LED से सुन्दर बधाई पत्र बनाते हैं, जिसको ‘पेपर-सर्किट’ कहते हैं. फिर ये छात्र चार भिन्न रोबॉट का निर्माण करते हैं – लाइन-ट्रैकिंग (काली रेखा पर चलने वाला रोबॉट), लाइट-सेंसिंग (प्रकाश का पीछा करने वाला रोबॉट), मोशन-सेंसिंग (किसी हिलती चीज़ से आकर्षित रोबॉट) और ऑब्स्टेकल-अवोइडिंग (रुकावटों से बचते हुए चलने वाला रोबॉट). इस उम्र के छात्र बिना माइक्रो-कंट्रोलर वाले रोबॉट का निर्माण करते हैं यानि इन रोबॉट में कंप्यूटर-चिप नहीं लगी होगी इसलिए इन्हेँ प्रोग्राम नहीं किया जा सकता.
छठी से आठवीं के विद्यार्थियों को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सीखाने के लिए हम MIT Media Lab द्वारा निर्मित निशुल्क प्रोग्राम Scratch का प्रयोग करते हैं. Scratch में सरल से मुश्किल प्रोग्रामिंग सीखाने के लिए हमनें 50 से ज़्यादा हिंदी वीडियो टुटोरिअल बनाये हैं जो हमारे YouTube चैनल पर निशुल्क उपलब्ध हैं.
नौंवीं से बारहवीं के छात्र ब्रेडबोर्ड का प्रयोग कर जटिल परिपथ का निर्माण करना सीखते हैं. ये छात्र micro:bit और Arduino माइक्रो-कंट्रोलर पर आधारित रोबॉट और Internet of Things के प्रोजेक्ट्स बनाते हैं और विज्ञानं के अन्य प्रयोग करना सीखते हैं.
हमारे अन्य clubs में छात्र app making, game design, website design, animation, movie making – इन पर प्रोजेक्ट्स बनाते हैं क्योंकि इससे रचनात्मक सोच, planning, decision-making, सहकार्यता जैसे जीवनकौशल तो विद्यार्थी सीखते ही हैं साथ ही वे नयी अर्थव्यवस्था में नियोजनीयता से सम्बंधित नए व्यवसायिक कौशल (Vocational Skills 2.0) भी सीखते हैं।
ग्रामीण विद्यालयों में जो कार्यशालाएं हम चलाते हैं इनका मुख्य उद्देश्य है इन विद्यालयों में भिन्न छात्र-संघ (Student Clubs) शुरू करना. ये Clubs छात्रों को अग्रणी टेक्नोलॉजी से अवगत कराते हैं और गणित और विज्ञान में रूचि उत्पन्न करते हैं.
हमारे अनुभव में ग्रामीण विद्यालयों में भी अत्यधिक ध्यान निर्धारित पाठ्क्रम पूरा करने और इम्तेहान में ज़्यादा नंबर लाने पर दिया जाने लगा है. मगर आज की दुनिया में सफलता के लिए अच्छे अंक लाना पर्याप्त नहीं है. २१वीं सदी में सफलता के लिए अपेक्षित शिक्षा को हमें DNA की उपमा से समझना चाहिए. जैसे DNA की संरचना में दो सूत्र होते हैं वैसे ही औपचारिक शिक्षा, निर्धारित पाठ्यक्रम जिसका एक अंश है, शिक्षा के DNA का एक सूत्र है और अनौपचारिक रूप से रचनात्मक सोच, आत्म-निर्देशित शिक्षा, जटिल समस्याओं के नवीन समाधान ढूंढ पाना इत्यादि कौशल शिक्षा के DNA का दूसरा सूत्र है. जब हम शिक्षा को इस दृष्टिकोण से देखेंगे तभी शिक्षा के इन दो सूत्रों में घर्षण कम होगा.
ग्रामीण विद्यालयों में टेक्नोलॉजी क्लब्स शुरू करना मूढ़ प्रस्ताव नहीं है. जिस दुनिया में ये बच्चे बड़े होंगे और रोज़गार तलाशेंगे अग्रणी टेक्नोलॉजी, विज्ञान और गणित की समझ बहुत लाभदायक सिद्ध होगी. इस तरह के क्लब्स शुरू करना आज ना तो मुश्किल है ना बहुत महंगा. कई ऑनलाइन दुकाने रोबॉट और अन्य प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक्स पुर्जे बेच रहीं हैं और एक इलेक्ट्रॉनिक्स क्लब जिसमें टेक्नोलॉजी और विज्ञान से सम्बंधित काफी सारे प्रयोग और प्रोजेक्ट्स किये जा सकते हैं 15-20 हज़ार रूपये की लागत में शुरू किया जा सकता है.
परन्तु इस प्रस्ताव में कुछ चुनौतियां ज़रूर हैं. जैसे एक प्रशिक्षक को ढूँढना जो इस तरह के क्लब्स को चलाने के बारे में बहुत उत्साहित हो. कई अध्यापकों को लगता है कि इस तरह की गतिविधियाँ उनपर अतिरिक्त बोझ हैं जिनको करने से उनको कोई आर्थिक लाभ नहीं होगा. कुछ अध्यापकों को, टेक्नोलॉजी पर कोई औपचारिक प्रशिक्षण न मिलने के कारण, ऐसी गतिविधियाँ शुरू करने में डर लगता है. पर हमारे अनुभव में ऐसे प्रशिक्षक मिल जाते हैं जिनको कुछ नया करने का उत्साह होता है और जो छात्रों के साथ ऐसे क्लब्स सह-अन्वेषक (co-explorer) की तरह शुरू करने के इच्छुक भी भी होते हैं. ये प्रशिक्षक अध्यापक हो सकते हैं, या वरिष्ठ छात्र, या ग्राम के युवा जिनको खुद भी प्रोजेक्ट्स और प्रयोग करके अनौपचारिक रूप में सीखने में मज़ा आता है.
एक और चुनौती है सीखने के संसाधनो की उपलभ्दि क्योंकि अनौपचारिक शिक्षा के लिए ऑनलाइन संसाधन बहुत ज़रूरी हैं. आज इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नोलॉजी के विषयों पर ऑनलाइन कई ट्यूटोरियल, वीडियो आदि मिल जाते हैं. समस्या है कि यह संसाधन अधिकतर अंग्रेज़ी में उपलब्ध हैं. इस समस्या को सुलझाने के लिए हमारा पूरा प्रयास है हिंदी में ट्यूटोरियल और वीडियो बनाने का और WhatsApp, Facebook जैसे सोशल मीडिया के ज़रिये छात्रों का मार्ग दर्शन करने का.
हमें लगता है छात्र-संघ (STEM 2.0 Clubs) शुरू कर, खेल-खेल में, टेक्नोलॉजी और विज्ञान सीखने का ये प्रयोग और २१वीं सदी के अनुकूल शिक्षा प्रदान करने के कई और प्रयोग अत्यंत आवश्यक हैं ताकि हम तेज़ी से बदलती हुई सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के लिए छात्रों को तैयार कर पायें.