ज़िन्दगी का भरपूर आनंद लेने के लिए ज़रूरी है अपने जूनून को पहचानना और उस जूनून को जीना. अलग शब्दों में कहा जाये तो आनंदमय ज़िन्दगी जीने के लिए जोश और उत्साह के साथ-साथ एक दिशा होना भी आवश्यक है.
गणितग्य टेरेंस ताओ मिसाल हैं एक ऐसे व्यक्ति की जिसने अपने जूनून को बहुत जल्द पहचाना और पूरे जोश के साथ उसी दिशा में चलता रहा. टेरेंस जब दो साल का था तो उसने टेलीविज़न पर ‘सेसमी स्ट्रीट’ कार्टून देखकर अपने को अंग्रेजी पड़ना सिखाया. तीन साल की उम्र में वो गणित के समीकरण के सवाल सुलझा रहा था. 7 साल की उम्र में उसने विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और 13 साल में गणित में मास्टर्स डिग्री कर ली. 21 साल में गणित में पीएचडी की उपाधि पायी और 24 साल की उम्र में अमरीका के UCLA विश्वविद्यालय में गणित का प्रोफेसर बन गया. यही नहीं 30 साल की उम्र में उसे फ़ील्ड्स मेडल से सम्मानित किया गया जो कि गणित में नोबल पुरुस्कार के समान है.
पर आप और मैं टेरेंस ताओ नहीं हैं. बचपन में हमने अपने जूनून की भविष्यवाणी नहीं सुनी! तो हमारे सामने सवाल यह है कि हम अपने जूनून को कैसे पहचानें?
कम उम्र के बच्चों का जूनून जानने के लिए सबसे ज़रूरी है कि इस तहकीकात का क्षेत्र बहुत विस्तृत रक्खा जाये. अगर बच्चे को किसी शैक्षिक विषय में गहरी रूचि है तो संभावित है कि उसे अपने विद्यालय में इस रूचि का पता चल जाएगा. परन्तु गैर-शैक्षिक दिलचस्पी को जानना थोड़ा मुश्किल है. अगर स्कूल में सुविधा उपलब्ध हो तो एक तरीका है भिन्न activities या क्लब में हिस्सा लेना. या फिर अगर गैर-शैक्षिक संस्थान आसानी से उपलभ्द हों और बहुत महंगे न हों तो वहां दाखिला लेना.
अभिभावकों के लिए एक चेतावनी! कहते हैं कर्म का फल निर्भर करता है कर्म के पीछे की नीयत पर. आपके अभिभावकीय कर्म तभी अच्छे होंगे जब आप इस इरादे से अपने बच्चों को भिन्न-भिन्न गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करेंगे कि वो खुद को ज़्यादा अच्छा समझ पायें. अगर इस प्रोत्साहन के पीछे आपकी नीयत ये होगी कि आपका बच्चा नृत्य, चित्रकला या शास्त्रीय संगीत इसलिए सीखे क्योंकि पड़ोसी का बच्चा ये सब सीख रहा है और किट्टी पार्टी में आप अपने बच्चों का गुणगान करना चाहते हैं, तो ये आपके कर्म खाते के लिए लाभदायक नहीं सिद्ध होगा!
दूसरी अभिभावकीय कार्मिक चेतावनी! आपको किसी भी जूनून का पक्षपाती नहीं होना चाहिए. आप अपनी धारणानुसार ऐसा नहीं कहेंगे, “तुम क्यों अपना वक्त इस जूनून पर ज़ाया कर रहे हो. इससे तुम्हें कोई नौकरी नहीं मिलने वाली.”
अपना जूनून जानने की तहकीकात का क्षेत्र विस्तृत करने के लिए नये शौक या हॉबी पालना एक और अच्छा तरीका है. आज किसी भी शौक पर ऑनलाइन बहुत जानकारी मिल जाती है इसलिए चाहे आप साधारण हॉबी चुनें या कोई अजीबोगरीब शौक पालें आज दोनों ही चीज़ों के बारे में जानकारी हासिल करना सरल हो गया है.
आत्म-अवलोकन (self-observation) और आत्म-विश्लेषण (self-analysis) के ज़रिये भी आप अपने जूनून को पहचान सकते हैं. जांच के देखिये कि आप कौन से कार्य में इतने लीन हो जाते हैं कि आपको समय का कोई बोध नहीं रहता. मनोवैज्ञानिक मिहाली चिकसतमहाई इस अवस्था को ‘फ्लो’ (flow) कहते हैं – जब आपको कोई कार्य करने में इतना आनंद आ रहा होता है और आप उस कार्य में इतने मगन हो जाते हैं कि आपके लिए समय रुक सा जाता है. एक महीने के लिए आप एक डायरी रख सकते हैं जिसमें आप नोट करते रहें कि आप पूरे दिन क्या कर रहे थे और वो करते हुए आप कितने ‘फ्लो’ में थे. पर्याप्त अवधि के लिए अगर आप अपना ‘फ्लो’ नोट करेंगे तो आपको अपने जूनून का कुघ आभास ज़रूर होने लगेगा.
मेरे अनुभव में अगर आप ये ‘फ्लो’ एक नवयुवा को समझा रहें हैं तो शैतान कह सकता है कि टेलीविज़न देखते हुए उसे समय का कोई आभास नहीं रहता! इसपर आपको उसको धैर्य से समझाना पड़ेगा सृजन (creation) और सेवन (consumption) में फर्क. मात्र उपभोग जीवन-सन्तुष्टि नहीं देता. अगर उसे लगता है कि टेलीविज़न देखने में उसकी अत्यधिक रूचि है तो वह इस रूचि को अपने फायदे में बदल सकता है. वो टेलीविज़न कार्यक्रमों की समझ से आलोचना कर सकता है, या उनसे प्रेरित हो एक अच्छा कहानीकार या अभिनेता बन सकता है. कहने का मतलब है टेलीविज़न देखना भी जूनून जानने का साधन हो सकता है.
माता-पिता, अध्यापक या कोई उस्ताद जो आपको जानता है वो भी आपके जूनून पर टिप्पणी कर सकता है. आपकी योग्यता, मनोभाव और रुचियाँ समझ वो आपका मार्ग दर्शन कर सकता है कि किस क्षेत्र में आपका रुझान और काबिलियत है.
अपना जूनून समझने के लिए आप ये जांच भी कर सकते हैं कि एक व्यवसाय में जीवन का एक दिन कैसा महसूस होता है. आजकल कई कार्यालय साल में एक दिन बच्चों को कार्यालय आने की अनुमति देते हैं (Bring Your Child to Work Day). युवा ऐसे अवसरों का लाभ उठा सकते हैं और एक व्यवसाय की हकीकत का कुछ अंदाज़ा लगाते हुए सोच सकते हैं कि उस व्यवसाय में उनकी कितनी रूचि हो सकती है. पिछले साल मेरी पत्नी हमारे मित्र की बेटी को एक दिन अपने बैंक ले गयी थी ताकि उस किशोरी को कुछ अंदेशा हो कि आखिर बैंकर करते क्या हैं?
अगर संभव हो तो स्कूल की शिक्षा पूर्ण होने पर युवाओं को अवकाश ले घूमना चाहिए – राष्ट्रीय या अंतर-राष्टीर्य भ्रमण, जिसको ‘Gap Year’ कहते हैं. इस दौरान उन्हें स्वयं-सेवी संश्थाओं में अपनी प्रतिभा और समय दान करना चाहिए, या घूमते हुए अलग-अलग तरह के काम करने चाहियें – जो जूनून कि आत्म-खोज में सहायक हों. gapyear.com जैसी संस्थाएं, पैसा ले, इसमें मदद करती हैं परन्तु इस तरह के भ्रमण की योजना खुद भी बनाई जा सकती है.
उमरदार लोगों को अगर जांचना है कि वो जो कर रहे हैं वो उनका जूनून है की नहीं तो उन्हें सोचना चाहिए कि क्या उनका काम उनके लिए मात्र एक नौकरी है, या वो हर सुबह पूरे उत्साह की साथ उठ अपने काम में लीन हो जाते हैं. जैसा पत्थर तोड़ते तीन आदमियों की कहानी में दर्शाया गया है. पहले आदमी से जब पूछा गया कि वो क्या कर रहा है तो वह बड़बड़ाया, “मैं पत्थर तोड़ रहा हूँ.” दूसरा बोला, “अपने परिवार की परवरिश की लिए कुछ पैसा कमा रहा हूँ.” और तीसरे ने उमंग के साथ कहा, “मैं एक भव्य इमारत के निर्माण में जुटा हूँ!”
अगर हम अपने जीवन में अपने जूनून का अनुसरण नहीं कर रहे होते तो उसका कारण ज़्यादातर होता है असफलता का डर, उपहास का डर, या आत्म-विशवास की कमी. हमारे अंदर की आवाज़ कहने लगती है, “मैं अपने मित्र की तुलना में इस कार्य में अच्छा नहीं हूँ इसलिए असफलता तो निश्चित है. और जब मैं असफल हूँगा तो सब मेरा मज़ाक उड़ायेंगे. मुझ पर पीठ पीछे हसेंगे.” ऐसा सोच हम कुछ नया करने से पीछे हट जाते हैं. हमें ज़रुरत है थोड़े गैर-तुलनात्मक या निरपेक्ष आत्म-अवलोकन की.
तो अपने जूनून की तहक़ीक़ात कीजिये और उसे खोज पूरे उत्साह के साथ उसका अनुसरण कीजिये. ऐसा करने से आपको कितनी सामाजिक सफलता मिलेगी यह कहना तो कठिन है मगर आपकी ज़िन्दगी निश्चित परमानन्द में कटेगी!
अपनी किताब ‘Surely You are Joking Mr Feynman’ में भौतिक विज्ञानी, और नोबेल पुरस्कार विजेता, रिचर्ड फ़ाईनमेन, यह कहानी सुनाते हैं: जब वे लगभग 12 वर्ष के थे उन्होंने रेडियो ठीक करने शुरू किये. एक बार उन्हें एक ऐसा रेडियो ठीक करने को कहा गया जो ऑन होते ही कुछ मिनटों तक कर्कश शोर करता और उसके बाद ही उसमें मधुर संगीत बजता. शुरू का कर्कश शोर रेडियो सुनने का सारा मज़ा किरकिरा कर देता.
फ़ाईनमेन ने समस्या के बारे में कुछ देर सोच यह निष्कर्ष निकाला कि रेडियो के अंदर के वाल्व गलत क्रम में गर्म हो रहे हैं. पहले एम्पलीफायर का वाल्व गर्म हो रहा है और तीव्र ध्वनि उत्पन्न कर रहा है क्योंकि अभी ट्यूनर का वाल्व गर्म नहीं हुआ है इसलिए रेडियो कोई स्टेशन नहीं पकड़ रहा है।
फ़ाईनमेन ने दोनों वाल्व की अदला बदली कर दी – की पहले ट्यूनर का वाल्व गर्म हो ताकि जब तक एम्पलीफायर वाल्व गर्म हो तबतक रेडियो किसी चैनल में ट्यून हो चुका हो. अब जब रेडियो को ऑन करो तो पहले कुछ मिनट वो शान्त रहता और फिर उसमें मधुर गाने बजने लगते.
रेडियो के अंदर के इन वाल्व की तरह हम मनुष्यों के अंदर भी तीन वाल्व होते हैं – पाने की चाह का वाल्व (to have), करने की चाह का वाल्व (to do), और सार्थक, आनंदपूर्ण जीवन जीने की चाह का वाल्व (to be).
पाने की चाह का वाल्व हमें ज़्यादा बैंक बैलेंस, अगली बड़ी गाड़ी और अगला बड़ा घर जोड़ने के लिए उकसाता है. सबसे पहले हमारे अंदर यह वाल्व जलता है और सामाजिक प्रतिष्ठ्ता पाने के लिए हम धन और भिन्न वस्तुएं जुटाना चाहते हैं.
पैसा और चीज़ें जुटाने के लिए हमारे अंदर फिर काम करने की चाह का वाल्व जल उठता है और हम रोज़गार या कोई व्यवसाय शुरू कर देते हैं. हम अपने से कहते हैं कि पहले हम काम करेंगे जिसको करके हमें बहुत सारा धन और वस्तुएं प्राप्त होंगी और फिर जब यह सब एकत्रित हो जायेगा तब हम अपने जीवन की सार्थकता और आत्म-जागरूकता (meaning, purpose and self-awareness) पर गौर करेंगे.
हमें सोचना चाहिए कि हमारे अंदर के ये तीन वाल्व जिस क्रम से उज्जवलित हो रहें हैं – सबसे पहले पाने की चाह का वाल्व, फिर पाने की चाह को पूर्ण करने के लिए काम करने की चाह का वाल्व, और अंत में अपने जीवन को सार्थक बनाने की चाह का वाल्व – क्या यह क्रम हमारे जीवन को आनंदपूर्ण बना रहा है, या क्या इससे हम चिंतित, और तनाव ग्रस्त हो रहे हैं? इस क्रम का अनुसरण करने से हमारा जीवन कर्कश शोर करने वाले रेडियो सा तो नहीं बनता जा रहा?
क्या हमें सबसे पहले अपने भीतर अपने जीवन को सार्थक और आनंदपूर्ण बनाने की चाह के वाल्व को उज्जवलित नहीं करना चाहिए ताकि हम ज़्यादा आत्म-जागरूक बन सकें? ऐसा करने से क्या हम पाने की चाह और करने की चाह के बेहतर विकल्प नहीं चुनेंगे? ऐसे विकल्प जो हममें बाध्यकारी व्यवहार और मजबूर करने वाली आदतें न विकसित करें. हम पैसा और चीज़ें जोड़ें पर इस तरह से की पर्यावरण को हानी न पहुँचे और अन्य मनुष्यों, जीवों और हम सभी की आने वाली पीढ़ियों के लिए भी पर्याप्त संसाधन बनें रहें.
इस बात पर विचार कीजियेगा की आप अपने जीवन के ये तीन वाल्व किस क्रम से प्रज्वलित करना चाहते हैं?
अधिकतर व्यवसाय और रोज़गार तीन चीज़ों पर निर्भर करते हैं – बाहुबल, मस्तिष्क बल, या हाथ का हुनर.
औद्योगिक क्रांति के बाद मशीनो ने मनुष्य के बाहुबल पर निर्भर रोजगार को प्रतिस्थापित करा और आज नैनो-मशीनें हाथ के हुनर वाले व्यवसायों को, और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस मनुष्य के बुद्धिबल पर बने उद्यम को प्रतिस्थापित कर रहीं हैं.
आज के छात्रों को कल व्यवसाय या रोज़गार के लिए अन्य मानवों से तो मुकाबला करना ही पड़ेगा, उनको बुद्धिमान मशीनों से भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी. ऐसे में सफलता के लिए आज युवाओं को कुछ अलग जीवन कौशल में निपुणता की आवश्यकता है.
जैसे जिज्ञासा, स्वतन्त्र, गहरी और रचनात्मक सोच, अच्छे प्रष्न पूछने की क्षमता, प्रतिरूप अभिज्ञान (pattern recognition), भिन्न विषयों को जोड़ समस्याओं को एक नए दृष्टिकोण से देख पाने का हुनर (ability to connect the dots), और जटिल समस्यायों के नवीन समाधान ढूढ़ने की क्षमता.
- सीखने की ललक (Yearning to Learn)
- आजीवन सव-प्रेरित, आत्म-निर्देशित शिक्षार्थी बने रहना (Learning to Learn)
- आत्म जागरूकता (Learning to Be)
21वीं सदी के इन जीवन कौशल के साथ-साथ युवाओं को तीन बुनियादी जीवनकौशल तो सीखने ही पड़ेंगे:
ये तीन कौशल लाल, हरे और नीले प्राथमिक रंगों की तरह हैं और जैसे इन तीन प्राथमिक रंगों को मिला कर कोई भी रंग बनाया जा सकता है, इन तीन कौशल में निपुण बन एक व्यक्ति अनगिनत और कौशल सीख सकता है.
मोबाइल फ़ोन से आप अपने दोस्तों से सीधे बात कर सकते हैं. पर अगर इसी मोबाइल फ़ोन पर आपको ऑनलाइन कुछ खरीदना हो तो आपको एक बिचौलिये की ज़रुरत पड़ती है जो विक्रेता को गारंटी दे पाए की आपने पैसे दे दिए हैं.
पर क्या ये मुमकिन है की एक क्रेता और विक्रेता आपस में सीधे समझौता कर लें, बिना किसी बिचौलिये की सहायता के?
ब्लॉकचैन नामक एक नयी टेक्नोलॉजी ऐसा मुमकिन कर रही है.
ब्लोकचेन को आप एक वितरित डेटाबेस यानि Distributed Database मान सकते हैं जो कि एक दो कम्प्यूटरों पर नहीं, हज़ारों लाखों कम्प्यूटरों पर प्रतिलिपित है. ब्लोकचेन का हर एक कंप्यूटर, हर एक रिकॉर्ड के पूरे इतिहास का वर्णन रखता है. यह डेटाबेस एन्क्रिप्टेड (encrypted) है, यानि हर एक रिकॉर्ड गोपनीय तरीके से दर्ज किया गया है. ब्लोकचेन फाल्ट-टोलेरंत (fault-tolerant) भी है, यानि अगर इस सिस्टम के कुछ कंप्यूटर ख़राब भी हो जाते हैं तब भी यह सिस्टम ठीक तरह से काम करता रहता है.
ब्लोकचेन डेटाबेस एक सार्वजनिक बहिखाता यानि Public Ledger है जिसमे कोई भी नये समझौते या रिकॉर्ड को दर्ज करने के लिए कई सारे साझेदारों कि स्वीकृति की ज़रुरत पड़ती है. इसको हैक (hack) करना बहुत मुश्किल है क्योंकि ऐसा करने के लिए हैकर को एक ही क्षण हज़ारों कम्प्यूटरों को साथ हैक करना पड़ेगा. यह कारण है कि हम ब्लोकचेन को एक सुरक्षित टेक्नोलॉजी मानते हैं.
ब्लोकचेन का पहला प्रयोग हुआ था २००८ में जब “बिट कॉइन” नामक नयी डिजिटल मुद्रा का आविष्कार हुआ. बिट कॉइन मुद्रा किसी देश, सरकार या बैंक द्वारा नियंत्रित मुद्रा नहीं है. यह एक डिजिटल मुद्रा है. अधिक जानकारी के लिए आप बिट कॉइन (Bit Coin) को गूगल कर सकते हैं.
केवल मुद्रा या पैसे सम्बंधित प्रयोजन के लिए ही नहीं, ब्लोकचेन का प्रयोग कहीं भी हो सकता है जहाँ पारम्परिक रूप से विश्वास, भरोसे या गारंटी के लिए एक बिचौलिये कि ज़रुरत है. जैसे वह सभी सौदे जिनकी आज नोटरी पब्लिक या किसी सरकारी संस्था को पुष्टि करनी पड़ती है.
मान लिया जाये कि आप एक मकान खरीद रहे हैं. आप चाहेंगे कि इस सौदे को सरकारी रजिस्ट्रार के यहाँ दर्ज़ किया जाये ताकि आपको एक सरकारी दस्तावेज मिले जो साबित करे कि आप उस मकान के कानूनन मालिक हैं. पब्लिक रजिस्ट्रार केवल इस सौदे का एक सबूत दे रहा है और ऐसी सम्भावना है कि भविष्य में पब्लिक रजिस्ट्रार का काम ब्लोकचेन टेक्नोलॉजी कर दे क्योंकि उसमे दर्ज सौदे कि उतनी ही मान्यता होगी जितनी आज रजिस्ट्री सर्टिफिकेट की है. सार्वजनिक होने की वजह से इसमें घपले की सम्भावना भी कम होगी.
ब्लोकचेन टेक्नोलॉजी के उपयोग के कई और संभावित उदाहरण हैं जैसे किसी सरकारी योजना के अंतर्गत यदि एक गरीब आदमी को कुछ वेतन मिलना हो तो ब्लोकचेन टेक्नोलॉजी से उसको वह रकम सीधे उसके मोबाइल फ़ोन पर दी जा सकती है. या अगर किसी प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त लोगों को नुक्सान भरपायी करनी हो तो उनको सहायता राशि सीधे उनके मोबाइल फ़ोन पर दी जा सकती है. इससे भ्रष्टाचार भी कम होगा.
शिक्षा में भी ब्लोकचेन का इस्तेमाल हो सकता है. कागज़ी डिग्री के बदले छात्ररों को ब्लोकचेन आधारित डिग्री दी जा सकती है. इससे जाली डिग्री की समस्या का भी समाधान हो सकता है.
ब्लोकचेन उन टेक्नोलॉजी में एक है जो कि 21वीं सदी कि अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने की क्षमता रखती हैं. आपको ब्लोकचेन टेक्नोलॉजी में क्या नया हो रहा है इसपर नज़र ज़रूर रखनी चाहिए.
जो ऑनलाइन प्लेटफार्म के उदाहरण मैंने अबतक दिये हैं वो ‘श्रम-निर्भर’ (labour-dependent) उदाहरण हैं. आज ‘पूँजी-निर्भर’ (capital-dependent) ऑनलाइन मार्किट भी उभर रहीं हैं. अगर सौभाग्य-वश आपके पास एक मकान है, जिसमे एक कमरा खाली रहता है, या आपके पास सुन्दर गाँव में एक पुश्तैनी हवेली है जो अधिकतर खाली रहती है, तो आप इनको AIRBNB में पर्यटकों को किराये में दे सकते हैं.
अगर आप उद्यमी हैं तो आप एक नयी ऑनलाइन मार्किट शुरू करने की भी सोच सकते हैं. किसी आला उत्पाद या अनूठी सेवा, जिसकी मांग तो है पर खंडित है, आप इस मांग के खरीदारों और विक्रेताओं को संग्रहित कर सकते हैं. जैसे ट्यूशन देने और लेने वालों का ऑनलाइन प्लेटफार्म, जहाँ ट्यूशन आमने-सामने या ऑनलाइन, दिया जा सकता हो, या किसी ख़ास संगीतप्रथा के संगीतकारों और संगीत प्रेमियों का प्लेटफार्म, या घर के छोटे-मोटे काम की मांग और उसको पूरा करने के सुयोग्य कारीगरों का तालमेल बैठानेवाला प्लेटफार्म.
अगर आप किसी ख़ास सेवा की कल्पना कर सकते हैं जो ऑनलाइन दी जा सकती है और आप थोड़ा जोखिम या risk लेने से नहीं घबराते तो आज आप एक नये ऑनलाइन प्लेटफार्म का सृजन सोच सकते हैं. एक विशिष्ठ अर्थशास्त्री ने ठीक कहा है, “risk takers are profit makers” – जो थोड़ा जोखिम उठाते हैं, मुनाफा उन्हीं को होता है.
अधिकतर लोगों की सोच रहती है कि वह ज़िन्दगी में पहले पैसा कमायेंगे और फिर वो काम करेंगे जिसको करने में उनको आनंद आता है. उभरती गिग इकॉनमी आपको मौका दे रही है कि आप आनंददायक काम भी करें और पैसा भी कमायें. अगर आप में हुनर है तो यह अर्थव्यवस्था आपको एक लचीली ज़िन्दगी जीने का अवसर भी देती है. कड़ी मेहनत से काम, और फिर कुछ दिन आराम – जिसमे आप भ्रमण पर निकल सकते हैं, या कोई हॉबी विकसित कर सकते हैं, या परिवार के साथ ज़्यादा वक्त गुज़ार सकते हैं. इसीलिए मेँने इस लेख का शीर्षक रखा है, मनमौजी रोज़गार!
लचीलेपन और स्वायत्तता के साथ-साथ गिग इकॉनमी आपको रचनात्मक अभिव्यक्ति का मौका भी देती है. आप कोई बड़ा उद्देश्य भी साध सकते हैं जैसे किसी लुप्त होती कला की मांग को फिर जीवित कर उन कलाकारों को एक नयी ज़िन्दगी देना. जिस काम को करने में आपको मज़ा आता है, उस काम में आप उस्तादी भी हासिल कर सकते हैं.
आंतरिक प्रेरणा के तीन मुख्य स्रोत हैं – स्वायत्तता, उस्तादी और महान उद्देश्य को पूरा करने का अथक प्रयास. गिग इकॉनमी आपको संभावना देती है कि आप ये तीनो लक्ष्य प्राप्त कर सार्थक और आनंदमय जीवन जीयें.
पर ऐसा नहीं कि गिग इकॉनमी के कोई नकारात्मक पक्ष नहीं हैं. इसमें कोई बंधा वेतन नहीं है, एक महीने से दूसरे महीने आप क्या कमायेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है, आमदनी में उतार-चढ़ाव की वजह से आपको भविष्य सम्बंधित योजनायें बनाने में दिक्कत आ सकती है, बैंक जैसी संस्थायें जिनसे कर्जा लेने के लिए आपको वेतन-प्रमाण देना पड़ता है वहां आपको मुश्किल हो सकती है और आपको पेंशन या प्रोविडेंट फण्ड की सुविधा नहीं मिलेगी. आखिर मनमौजी होने की कुछ तो कीमत अदा करनी ही पड़ेगी!
आपको सोचना पड़ेगा की आप कितने प्रतिभाशाली हैं, आपको अपनी निपुणता पर कितना विश्वास है, आपकी आर्थिक स्थिति क्या है, आपकी जोखिम-क्षमता कितनी है, आप ज़िन्दगी से चाहते क्या हैं, सफल सार्थक जीवन की आपकी परिभाषा क्या है…
आपकी जो भी सोच है आज आप आरक्षणपूर्ण सरकारी नौकरी कर सकते हैं, या किसी प्राइवेट कंपनी के मुलाजिम बन सकते हैं, या एक मल्टीनेशनल कंपनी में रोजगार ढूंढ सकते है, या उभरती गिग इकॉनमी में मनमौजी काम कर सकते हैं, या मुमकिन हो तो शायद आप इन भिन्न विकल्पों का मिश्रण पसंद करें – जैसे तीन दिन प्राइवेट कंपनी में नौकरी और तीन दिन गिग इकॉनमी में मनमौजी काम.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको इन सब अवसरों की जानकारी हो ताकि आप एक सूचित निर्णय ले पायें. इस लेख का उद्देश्य आपको यह जानकारी देना ही है.