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हमारे जीवन के तीन वाल्व

अपनी किताब ‘Surely You are Joking Mr Feynman’ में भौतिक विज्ञानी, और नोबेल पुरस्कार विजेता, रिचर्ड फ़ाईनमेन, यह कहानी सुनाते हैं: जब वे लगभग 12 वर्ष के थे उन्होंने रेडियो ठीक करने शुरू किये. एक बार उन्हें एक ऐसा रेडियो ठीक करने को कहा गया जो ऑन होते ही कुछ मिनटों तक कर्कश शोर करता और उसके बाद ही उसमें मधुर संगीत बजता. शुरू का कर्कश शोर रेडियो सुनने का सारा मज़ा किरकिरा कर देता.

फ़ाईनमेन ने समस्या के बारे में कुछ देर सोच यह निष्कर्ष निकाला कि रेडियो के अंदर के वाल्व गलत क्रम में गर्म हो रहे हैं. पहले एम्पलीफायर का वाल्व गर्म हो रहा है और तीव्र ध्वनि उत्पन्न कर रहा है क्योंकि अभी ट्यूनर का वाल्व गर्म नहीं हुआ है इसलिए रेडियो कोई स्टेशन नहीं पकड़ रहा है।

फ़ाईनमेन ने दोनों वाल्व की अदला बदली कर दी – की पहले ट्यूनर का वाल्व गर्म हो ताकि जब तक एम्पलीफायर वाल्व गर्म हो तबतक रेडियो किसी चैनल में ट्यून हो चुका हो. अब जब रेडियो को ऑन करो तो पहले कुछ मिनट वो शान्त रहता और फिर उसमें मधुर गाने बजने लगते.

रेडियो के अंदर के इन वाल्व की तरह हम मनुष्यों के अंदर भी तीन वाल्व होते हैं – पाने की चाह का वाल्व (to have), करने की चाह का वाल्व (to do), और सार्थक, आनंदपूर्ण जीवन जीने की चाह का वाल्व (to be).

पाने की चाह का वाल्व हमें ज़्यादा बैंक बैलेंस, अगली बड़ी गाड़ी और अगला बड़ा घर जोड़ने के लिए उकसाता है. सबसे पहले हमारे अंदर यह वाल्व जलता है और सामाजिक प्रतिष्ठ्ता पाने के लिए हम धन और भिन्न वस्तुएं जुटाना चाहते हैं.

पैसा और चीज़ें जुटाने के लिए हमारे अंदर फिर काम करने की चाह का वाल्व जल उठता है और हम रोज़गार या कोई व्यवसाय शुरू कर देते हैं. हम अपने से कहते हैं कि पहले हम काम करेंगे जिसको करके हमें बहुत सारा धन और वस्तुएं प्राप्त होंगी और फिर जब यह सब एकत्रित हो जायेगा तब हम अपने जीवन की सार्थकता और आत्म-जागरूकता (meaning, purpose and self-awareness) पर गौर करेंगे.

हमें सोचना चाहिए कि हमारे अंदर के ये तीन वाल्व जिस क्रम से उज्जवलित हो रहें हैं – सबसे पहले पाने की चाह का वाल्व, फिर पाने की चाह को पूर्ण करने के लिए काम करने की चाह का वाल्व, और अंत में अपने जीवन को सार्थक बनाने की चाह का वाल्व – क्या यह क्रम हमारे जीवन को आनंदपूर्ण बना रहा है, या क्या इससे हम चिंतित, और तनाव ग्रस्त हो रहे हैं? इस क्रम का अनुसरण करने से हमारा जीवन कर्कश शोर करने वाले रेडियो सा तो नहीं बनता जा रहा?

क्या हमें सबसे पहले अपने भीतर अपने जीवन को सार्थक और आनंदपूर्ण बनाने की चाह के वाल्व को उज्जवलित नहीं करना चाहिए ताकि हम ज़्यादा आत्म-जागरूक बन सकें? ऐसा करने से क्या हम पाने की चाह और करने की चाह के बेहतर विकल्प नहीं चुनेंगे? ऐसे विकल्प जो हममें बाध्यकारी व्यवहार और मजबूर करने वाली आदतें न विकसित करें. हम पैसा और चीज़ें जोड़ें पर इस तरह से की पर्यावरण को हानी न पहुँचे और अन्य मनुष्यों, जीवों और हम सभी की आने वाली पीढ़ियों के लिए भी पर्याप्त संसाधन बनें रहें.

इस बात पर विचार कीजियेगा की आप अपने जीवन के ये तीन वाल्व किस क्रम से प्रज्वलित करना चाहते हैं?

तीन बुनियादी जीवन कौशल

अधिकतर व्यवसाय और रोज़गार तीन चीज़ों पर निर्भर करते हैं – बाहुबल, मस्तिष्क बल, या हाथ का हुनर.

औद्योगिक क्रांति के बाद मशीनो ने मनुष्य के बाहुबल पर निर्भर रोजगार को प्रतिस्थापित करा और आज नैनो-मशीनें हाथ के हुनर वाले व्यवसायों को, और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस मनुष्य के बुद्धिबल पर बने उद्यम को प्रतिस्थापित कर रहीं हैं.

आज के छात्रों को कल व्यवसाय या रोज़गार के लिए अन्य मानवों से तो मुकाबला करना ही पड़ेगा, उनको बुद्धिमान मशीनों से भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी. ऐसे में सफलता के लिए आज युवाओं को कुछ अलग जीवन कौशल में निपुणता की आवश्यकता है.

जैसे जिज्ञासा, स्वतन्त्र, गहरी और रचनात्मक सोच, अच्छे प्रष्न पूछने की क्षमता, प्रतिरूप अभिज्ञान (pattern recognition), भिन्न विषयों को जोड़ समस्याओं को एक नए दृष्टिकोण से देख पाने का हुनर (ability to connect the dots), और जटिल समस्यायों के नवीन समाधान ढूढ़ने की क्षमता.

  • सीखने की ललक (Yearning to Learn)
  • आजीवन सव-प्रेरित, आत्म-निर्देशित शिक्षार्थी बने रहना (Learning to Learn)
  • आत्म जागरूकता (Learning to Be)

21वीं सदी के इन जीवन कौशल के साथ-साथ युवाओं को तीन बुनियादी जीवनकौशल तो सीखने ही पड़ेंगे:

ये तीन कौशल लाल, हरे और नीले प्राथमिक रंगों की तरह हैं और जैसे इन तीन प्राथमिक रंगों को मिला कर कोई भी रंग बनाया जा सकता है, इन तीन कौशल में निपुण बन एक व्यक्ति अनगिनत और कौशल सीख सकता है.

ब्लॉकचैन क्या है?

मोबाइल फ़ोन से आप अपने दोस्तों से सीधे बात कर सकते हैं. पर अगर इसी मोबाइल फ़ोन पर आपको ऑनलाइन कुछ खरीदना हो तो आपको एक बिचौलिये की ज़रुरत पड़ती है जो विक्रेता को गारंटी दे पाए की आपने पैसे दे दिए हैं.

पर क्या ये मुमकिन है की एक क्रेता और विक्रेता आपस में सीधे समझौता कर लें, बिना किसी बिचौलिये की सहायता के?

ब्लॉकचैन नामक एक नयी टेक्नोलॉजी ऐसा मुमकिन कर रही है.

ब्लोकचेन को आप एक वितरित डेटाबेस यानि Distributed Database मान सकते हैं जो कि एक दो कम्प्यूटरों पर नहीं, हज़ारों लाखों कम्प्यूटरों पर प्रतिलिपित है. ब्लोकचेन का हर एक कंप्यूटर, हर एक रिकॉर्ड के पूरे इतिहास का वर्णन रखता है. यह डेटाबेस एन्क्रिप्टेड (encrypted) है, यानि हर एक रिकॉर्ड गोपनीय तरीके से दर्ज किया गया है. ब्लोकचेन फाल्ट-टोलेरंत (fault-tolerant) भी है, यानि अगर इस सिस्टम के कुछ कंप्यूटर ख़राब भी हो जाते हैं तब भी यह सिस्टम ठीक तरह से काम करता रहता है.

ब्लोकचेन डेटाबेस एक सार्वजनिक बहिखाता यानि Public Ledger है जिसमे कोई भी नये समझौते या रिकॉर्ड को दर्ज करने के लिए कई सारे साझेदारों कि स्वीकृति की ज़रुरत पड़ती है. इसको हैक (hack) करना बहुत मुश्किल है क्योंकि ऐसा करने के लिए हैकर को एक ही क्षण हज़ारों कम्प्यूटरों को साथ हैक करना पड़ेगा. यह कारण है कि हम ब्लोकचेन को एक सुरक्षित टेक्नोलॉजी मानते हैं.

ब्लोकचेन का पहला प्रयोग हुआ था २००८ में जब “बिट कॉइन” नामक नयी डिजिटल मुद्रा का आविष्कार हुआ. बिट कॉइन मुद्रा किसी देश, सरकार या बैंक द्वारा नियंत्रित मुद्रा नहीं है. यह एक डिजिटल मुद्रा है. अधिक जानकारी के लिए आप बिट कॉइन (Bit Coin) को गूगल कर सकते हैं.

केवल मुद्रा या पैसे सम्बंधित प्रयोजन के लिए ही नहीं, ब्लोकचेन का प्रयोग कहीं भी हो सकता है जहाँ पारम्परिक रूप से विश्वास, भरोसे या गारंटी के लिए एक बिचौलिये कि ज़रुरत है. जैसे वह सभी सौदे जिनकी आज नोटरी पब्लिक या किसी सरकारी संस्था को पुष्टि करनी पड़ती है.

मान लिया जाये कि आप एक मकान खरीद रहे हैं. आप चाहेंगे कि इस सौदे को सरकारी रजिस्ट्रार के यहाँ दर्ज़ किया जाये ताकि आपको एक सरकारी दस्तावेज मिले जो साबित करे कि आप उस मकान के कानूनन मालिक हैं. पब्लिक रजिस्ट्रार केवल इस सौदे का एक सबूत दे रहा है और ऐसी सम्भावना है कि भविष्य में पब्लिक रजिस्ट्रार का काम ब्लोकचेन टेक्नोलॉजी कर दे क्योंकि उसमे दर्ज सौदे कि उतनी ही मान्यता होगी जितनी आज रजिस्ट्री सर्टिफिकेट की है. सार्वजनिक होने की वजह से इसमें घपले की सम्भावना भी कम होगी.

ब्लोकचेन टेक्नोलॉजी के उपयोग के कई और संभावित उदाहरण हैं जैसे किसी सरकारी योजना के अंतर्गत यदि एक गरीब आदमी को कुछ वेतन मिलना हो तो ब्लोकचेन टेक्नोलॉजी से उसको वह रकम सीधे उसके मोबाइल फ़ोन पर दी जा सकती है. या अगर किसी प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त लोगों को नुक्सान भरपायी करनी हो तो उनको सहायता राशि सीधे उनके मोबाइल फ़ोन पर दी जा सकती है. इससे भ्रष्टाचार भी कम होगा.

शिक्षा में भी ब्लोकचेन का इस्तेमाल हो सकता है. कागज़ी डिग्री के बदले छात्ररों को ब्लोकचेन आधारित डिग्री दी जा सकती है. इससे जाली डिग्री की समस्या का भी समाधान हो सकता है.

ब्लोकचेन उन टेक्नोलॉजी में एक है जो कि 21वीं सदी कि अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने की क्षमता रखती हैं. आपको ब्लोकचेन टेक्नोलॉजी में क्या नया हो रहा है इसपर नज़र ज़रूर रखनी चाहिए.

मनमौजी रोज़गार (भाग-2)

जो ऑनलाइन प्लेटफार्म के उदाहरण मैंने अबतक दिये हैं वो ‘श्रम-निर्भर’ (labour-dependent) उदाहरण हैं. आज ‘पूँजी-निर्भर’ (capital-dependent) ऑनलाइन मार्किट भी उभर रहीं हैं. अगर सौभाग्य-वश आपके पास एक मकान है, जिसमे एक कमरा खाली रहता है, या आपके पास सुन्दर गाँव में एक पुश्तैनी हवेली है जो अधिकतर खाली रहती है, तो आप इनको AIRBNB में पर्यटकों को किराये में दे सकते हैं.

अगर आप उद्यमी हैं तो आप एक नयी ऑनलाइन मार्किट शुरू करने की भी सोच सकते हैं. किसी आला उत्पाद या अनूठी सेवा, जिसकी मांग तो है पर खंडित है, आप इस मांग के खरीदारों और विक्रेताओं को संग्रहित कर सकते हैं. जैसे ट्यूशन देने और लेने वालों का ऑनलाइन प्लेटफार्म, जहाँ ट्यूशन आमने-सामने या ऑनलाइन, दिया जा सकता हो, या किसी ख़ास संगीतप्रथा के संगीतकारों और संगीत प्रेमियों का प्लेटफार्म, या घर के छोटे-मोटे काम की मांग और उसको पूरा करने के सुयोग्य कारीगरों का तालमेल बैठानेवाला प्लेटफार्म.

अगर आप किसी ख़ास सेवा की कल्पना कर सकते हैं जो ऑनलाइन दी जा सकती है और आप थोड़ा जोखिम या risk लेने से नहीं घबराते तो आज आप एक नये ऑनलाइन प्लेटफार्म का सृजन सोच सकते हैं. एक विशिष्ठ अर्थशास्त्री ने ठीक कहा है, “risk takers are profit makers” – जो थोड़ा जोखिम उठाते हैं, मुनाफा उन्हीं को होता है.

अधिकतर लोगों की सोच रहती है कि वह ज़िन्दगी में पहले पैसा कमायेंगे और फिर वो काम करेंगे जिसको करने में उनको आनंद आता है. उभरती गिग इकॉनमी आपको मौका दे रही है कि आप आनंददायक काम भी करें और पैसा भी कमायें. अगर आप में हुनर है तो यह अर्थव्यवस्था आपको एक लचीली ज़िन्दगी जीने का अवसर भी देती है. कड़ी मेहनत से काम, और फिर कुछ दिन आराम – जिसमे आप भ्रमण पर निकल सकते हैं, या कोई हॉबी विकसित कर सकते हैं, या परिवार के साथ ज़्यादा वक्त गुज़ार सकते हैं. इसीलिए मेँने इस लेख का शीर्षक रखा है, मनमौजी रोज़गार!

लचीलेपन और स्वायत्तता के साथ-साथ गिग इकॉनमी आपको रचनात्मक अभिव्यक्ति का मौका भी देती है. आप कोई बड़ा उद्देश्य भी साध सकते हैं जैसे किसी लुप्त होती कला की मांग को फिर जीवित कर उन कलाकारों को एक नयी ज़िन्दगी देना. जिस काम को करने में आपको मज़ा आता है, उस काम में आप उस्तादी भी हासिल कर सकते हैं.

आंतरिक प्रेरणा के तीन मुख्य स्रोत हैं – स्वायत्तता, उस्तादी और महान उद्देश्य को पूरा करने का अथक प्रयास. गिग इकॉनमी आपको संभावना देती है कि आप ये तीनो लक्ष्य प्राप्त कर सार्थक और आनंदमय जीवन जीयें.

पर ऐसा नहीं कि गिग इकॉनमी के कोई नकारात्मक पक्ष नहीं हैं. इसमें कोई बंधा वेतन नहीं है, एक महीने से दूसरे महीने आप क्या कमायेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है, आमदनी में उतार-चढ़ाव की वजह से आपको भविष्य सम्बंधित योजनायें बनाने में दिक्कत आ सकती है, बैंक जैसी संस्थायें जिनसे कर्जा लेने के लिए आपको वेतन-प्रमाण देना पड़ता है वहां आपको मुश्किल हो सकती है और आपको पेंशन या प्रोविडेंट फण्ड की सुविधा नहीं मिलेगी. आखिर मनमौजी होने की कुछ तो कीमत अदा करनी ही पड़ेगी!

आपको सोचना पड़ेगा की आप कितने प्रतिभाशाली हैं, आपको अपनी निपुणता पर कितना विश्वास है, आपकी आर्थिक स्थिति क्या है, आपकी जोखिम-क्षमता कितनी है, आप ज़िन्दगी से चाहते क्या हैं, सफल सार्थक जीवन की आपकी परिभाषा क्या है…

आपकी जो भी सोच है आज आप आरक्षणपूर्ण सरकारी नौकरी कर सकते हैं, या किसी प्राइवेट कंपनी के मुलाजिम बन सकते हैं, या एक मल्टीनेशनल कंपनी में रोजगार ढूंढ सकते है, या उभरती गिग इकॉनमी में मनमौजी काम कर सकते हैं, या मुमकिन हो तो शायद आप इन भिन्न विकल्पों का मिश्रण पसंद करें – जैसे तीन दिन प्राइवेट कंपनी में नौकरी और तीन दिन गिग इकॉनमी में मनमौजी काम.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको इन सब अवसरों की जानकारी हो ताकि आप एक सूचित निर्णय ले पायें. इस लेख का उद्देश्य आपको यह जानकारी देना ही है.

मनमौजी रोज़गार (भाग-1)

आज नौकरी की परिभाषा और कार्य का स्वरूप बदल रहा है. एक नयी वैश्विक अर्थव्यवस्था उभर रही है जिसको नाम दिया जा रहा है ‘गिग’ इकॉनमी – फ्रीलान्स, प्रोजेक्ट आधारित काम करने की विधि. गिग इकॉनमी में आपकी सफलता निर्भर है आपकी विशिष्ठ निपुणता पर. यह हो सकती है आपकी असाधारण प्रतिभा, गहरा अनुभव, विशेषज्ञ ज्ञान या कौशल.

20वीं सदी के पहले कुछ दशकों में, भारत के एक युवा महानगर निवासी को यदि सरकारी नौकरी मिल जाती तो लोग कहते, “अरे, उस सौभाग्यशाली को तो सरकारी नौकरी मिल गयी, उसकी तो ज़िन्दगी बन गयी!” तब सुगम जीवन का रास्ता था ग्रेजुएशन तक पड़ना और फिर किसी सरकारी नौकरी में लग जाना, या सरकारी नौकरी न मिली तो किसी अच्छी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करना. ऐसी नौकरी मिल जाने पर अधिकतर लोग एक ही संस्था में आजीवन काम करते और रिटायर होने पर पेंशन और प्रोविडेंट फण्ड से बची ज़िन्दगी गुजारते.

20वीं सदी के आखरी कुछ दशकों में तस्वीर बदली. एक युवा महानगर निवासी के सौभाग्यशाली होने की परिभाषा हुई किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिलना. ‘पहले पढ़ाई ख़त्म करना और फिर नौकरी करना’, यह नक्शा भी बदला. तरक्की के लिए पुनःप्रशिक्षण (re-training) अनिवार्य बन गया. चाहे वो सेमीनारऔर कांफ्रेंस में जाना हो, या कार्यकारी पाठ्यक्रम (executive courses) में भाग लेना, या अध्ययन-प्रोत्साहन अवकाश (sabbatical) लेना. लोग अब आजीवन एक ही नौकरी नहीं करते और अपने कामकाजी जीवन में दो तीन नौकरियां तो बदल ही लेते.

नौकरी की परिभाषा आज फिर बदल रही है. पहले नौकरी का मतलब समझा जाता था ‘सेवा’ – एक व्यक्ति कुछ सेवा प्रदान करने के योग्य है और यह सेवा प्रदान करने के लिए उसे एक संस्था वेतन देती है. आज हमारा मानना है की नौकरी एक व्यक्ति की ‘मूल्य-संवर्धन’ (value-add) करने की क्षमता है. किसी उत्पाद (product) या सर्विस में एक व्यक्ति कितना मूल्य-संवर्धन (value-addition) कर सकता है, उसकी इस क्षमता पर उसे अदायगी मिलती है. यह अदायगी फीस, वेतन, बोनस, लाभ-साझेदारी, या कंपनी की शेयर्स हो सकती है.

मान लिया जाये कुछ उद्यमकर्त्ता मिलकर एक IT कंपनी शुरू करते हैं, जिसमे वो बैंकों के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाने का प्रयोजन रखते हैं. आपके पास बैंकिंग का अनुभव और ख़ास जानकारी है. आप अपना अनुभव और बैंकिंग का ज्ञान इस IT कंपनी को पेश कर सकते हैं और अगर उन्हें लगेगा कि आपकी यह निपुणता उनको बेहतर सॉफ्टवेयर बनाने में सहायता देगी तो वो आपको आपकी निपुणता के अनुरूप अदायगी का प्रस्ताव रखेंगे. फिर आप इस अदायगी पर खरीद-फरोख्त (negotiation) कर उसे और बेहतर बना सकते हैं.

आज आपका विशेषज्ञ ज्ञान, प्रतिभा, कौशल और अनुभव आधार हैं आपकी मूल्य-संवर्धन क्षमता के. आज की अर्थव्यवस्था में सफलता के लिए आप एक निष्क्रिय नौकरी साधक (passive job seeker) नहीं बने रह सकते, आपको तो अपनी नौकरी का आविष्कार खुद करना है! इसके लिए आपको आपको आना चाहिये अपने ज्ञान, प्रतिभा, कौशल या अनुभव को सुन्दर पैकेज कर, इसकी तिजारत (marketing) करना.

अच्छी खबर यह है कि अगर आज आपके पास कोई असाधारण ज्ञान, प्रतिभा या कौशल है, तो आप उसको ऑनलाइन दुनिया भर में मार्किट कर सकते हैं. आपकी निपुणता की मांग जहाँ कहीं भी हो आज यह मुमकिन है कि आप इस मांग की पूर्ति घर बैठे कर दें. कई वेबसाइट और ऑनलाइन प्लेटफार्म अब उपलब्ध हैं जो एक निपुणता के खरीदारों और विक्रेताओं को संग्रहित करते हैं.

अगर आप दस्तकार हैं तो आप Etsy website में अपनी उत्कृष्ट कृतियों बेच सकते हैं. अगर आप चित्रकार, डिज़ाइनर या एनिमेटर हैं तो आप Fiverr में दुनिया भर से फ्रीलान्स काम ले सकते हैं. अगर आप कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में निपुण हैं तो आप Upwork में प्रोजेक्ट्स ढूंढ सकते हैं. फिल्म बनाने का शौक रखते हैं तो 90 seconds website में खरीदार ढूँढिये. अगर आपकी आवाज़ में जादू है तो Voice123 website में वॉइसओवर का काम उपलप्ध है.

अगर आप एक उत्साही इंजीनियर हैं जिसको इंजीनियरिंग की जटिल समस्याएं सुलझाने में आनंद आता है, तो आज कई कंपनियां अपनी इंजीनियरिंग समस्याओं को ऑनलाइन डाल देती हैं और सुलझाने वाले को अच्छा इनाम देती हैं, और इससे जो प्रतिष्ठा मिलती है वो अलग. आज के दिन प्रतिष्ठा ज़्यादा कमाने का आधार बन गयी है.

यह केवल कुछ उदाहरण हैं. आज कई और ऑनलाइन प्लेटफार्म हैं जो भिन्न प्रकार के ज्ञान, प्रतिभा और कौशल की खंडित मांग को संग्रहित कर उस ज्ञान, प्रतिभा और कौशल की वैश्विक मार्किट बन गए हैं जहाँ क्रेता और विक्रेता एक दूसरे से मिल सौदा कर सकते हैं. भुगतान ऑनलाइन बैंकिंग से होता है और क्रेता और विक्रेता धोखा नहीं देते क्योंकि दोनों की साख (reputation) डाव पर होती है. हर सौदे के बाद क्रेता और विक्रेता दोनों ही दूसरी पार्टी का मूल्यांकन कर सकते हैं. अगर उनकी reputation पर दाग लगा तो क्रेता का आगे कोई काम करने को तैयार नहीं होगा और विक्रेता को कोई काम देने को.

स्व-नियोजित व्यक्ति और अति-लघु उद्योग पहले केवल स्थानीय मांग पर निर्भर थे. उनके पास मार्केटिंग करने के लिए पूँजी नहीं थी और उनकी विशेष निपुणता, जैसे हस्तकला, की मांग बहुत खंडित थी. वे केवल मौखिक प्रचार पर निर्भर थे या किसी बिचौलिये पर. दलाल अनभिज्ञ शिल्पकारों का शोषण भी करते थे. पर आज एक व्यक्ति या अति-लघु उद्योग, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के ज़रिये, अपनी प्रतिभा दुनिया भर में बेच सकता है. ये प्रतिभा परंपरागत कला हो सकती है या नवीनतम कौशल, जैसे 3D एनीमेशन.

अगर आप इस नयी अर्थव्यवस्था का फायदा लेना चाहते हैं तो आपको ऐसी निपुणता को विकसित करने पर ध्यान देना होगा.

चौथी औद्योगिक क्रान्ति और नौकरियों का बदलता स्वरूप (भाग-2)

चौथी औद्योगिक क्रान्ति और नौकरियों का बदलता स्वरूप (भाग-2)

Humans and AI working together.

जैसे चौथी औद्योगिक क्रांति वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक नया आकार दे रही है, रोबोट और कृत्रिम बुद्धिमता वाली मशीनें नौकरियों को ख़त्म नहीं कर रहीं परन्तु रोज़गार का स्वरूप ज़रूर बदल रहीं हैं. आने वाले समय में कम-कौशल, कम-वेतन और उच्च-कौशल, उच्च-वेतन वाली नौकरियां तो अधिकतर बनी रहेंगी, लेकिन मौजूदा मध्य-स्तरीय नौकरियों के गायब हो जाने की बहुत सम्भावना है. अर्थशास्त्री इसको ‘job polarisation’ यानी ‘नौकरियों का ध्रुवीकरण’ कहते हैं, जब केवल दो सिरों में चीज़ें होती हैं और मध्य खोखला हो जाता है. उभरती अर्थव्यवस्था का स्वरूप कुछ रेट-घड़ी की आकृति जैसा हो सकता है.

ऐसा देखा गया है की जब मध्य-स्तरीय नौकरियां ख़त्म होती हैं तब अधिकतर लोग जो ये नौकरियाँ कर रहे थे, वे ऐसे जटिल कौशल नहीं सीख पाते जिनको सीख वे उच्च-कौशल उच्च-वेतन वाली नौकरियाँ पा लें और इसलिए वे नीचे की तरफ आ जाते हैं जहाँ कम-कौशल कम-वेतन वाली नौकरियाँ विद्यमान हैं. निचली तरफ बढ़ती आपूर्ति और स्थिर माँग (increasing supply and unchanging demand) कारण बनती है वेतन को और कम करने का. अगर आप ऊपर की तरफ विद्यमान उच्च-कौशल और उच्च-वेतन वाली नौकरियां चाहते हैं तो आपको लगातार नवीन दक्षता और नए कौशल सीखने पड़ेंगे ताकि आप बदलती परिस्थियों के अनुरूप अपने को ढाल सकें.

तो वो कौनसे जीवन कौशल हैं जो आपको उच्च-वेतन वाले रोज़गार के काबिल बना सकते हैं?

इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें सोचना होगा की कौन से ऐसे काम हैं जो आने वाले समय में भी रोबोट और बुद्धिमान मशीन नहीं कर पायेंगी?

इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता, Frey और Osborne के मुताबिक हस्त-निपुणता (manual dexterity), उच्च संज्ञानात्मक कौशल (high cognitive skills) और सामाजिक कौशल (social skills) ऐसे क्षेत्र हैं जिनका कम्प्युटरीकरण कठिन है और इसलिए ऐसे कौशल वाले काम करने के लिए हम मनुष्यों की ज़रुरत बनी रहेगी. उदाहरणतः आने वाले समय मैं नैनो-मशीनें (एक परमाणु जितनी छोटी मशीनें) बहुत महीन काम कर पायेंगी, पर तब भी हाथ से किये गए बहुत बारीक काम की माँग बनी रहेगी और ख़ास ऑनलाइन बाज़ार, जैसे etsy, ऐसे हुनर वाले काम की माँग को बढ़ायेंगे और पूरा करेने में मदद करेंगे.

मध्य-स्तरीय प्रशासनिक नौकरियां (middle-tier administrative jobs) जहाँ काम नियम-आधारित है, जैसे अकाउंटेंट का काम, ऐसी नौकरियों को बुद्धिमान मशीनें प्रतिस्थापित कर देंगी ऐसा होने की बहुत संभावना है. जबकी देखभाल और आतिथ्य सम्बंधित व्यवसायों की कंप्यूटरीकरण द्वारा प्रतिस्थापित किये जाने की संभावना कम है. चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति के कारण मनुष्य का जीवनकाल बढ़ रहा है. बूढ़ी होती आबादी को अधिक देखभाल की ज़रुरत पड़ेगी. बुद्धिमान मशीनें चिकित्सा निदान (medical diagnostics) को तो बहुत सटीक (accurate) बना देंगी परन्तु इस कारण डॉक्टरों को मरीज़ों के साथ और भी ज़्यादा संवेदनशील होना पड़ेगा.

देखभाल, सहानुभूति, और संवेदनशीलता ऐसे जीवनकौशल हैं जिनकी आने वाले समय में बहुत माँग होगी.

आभासी और संवर्धित वास्तविकता (virtual and augmented reality) का ज़्यादा व्यापक प्रयोग होगा और इस कारण विशुद्ध अनुभवों (authentic experiences) की माँग बढ़ेगी. आतिथ्य और फिटनेस उद्योग में भी नौकरियों बढ़ेंगी. आत्म-निरीक्षण, आत्म-जागरूकता और ध्यान (meditation) को प्रोत्साहित करने से जुड़े रोज़गार की माँग के बढ़ने की भी काफी सम्भावना है.

आज की दुनिया की समस्याएं, जैसे जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, ऊर्जा संकट, पीने योग्य पानी की कमी, बढ़ती वैश्विक आबादी, ये सभी जटिल समस्याएं हैं. ऐसी जटिल समस्याओं के नवीन समाधान सोचने के कौशल, विशेष रूप से मानव बुद्धिमता और कृत्रिम बुद्धिमता को जोड़ सकना, जिसको computational thinking कहते हैं, की बेहद माँग होगी.

नई उच्च-वेतन वाली नौकरियां ज्ञान और प्रतिभा गहन होंगी (knowledge and talent intensive). उदाहरणतः जैसे-जैसे sensors घरों में गर्म, ठंडा, रोशनी, हवा और अन्य यंत्रों को नियंत्रित करने लगे हैं (जिसको गृह-स्वचालन या home automation कहते हैं), एक आम भवन निर्माण कामगार को भी इलेक्ट्रॉनिक्स की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक हो जायेगा.

एक बावर्ची जो न केवल स्वाद के लिए खाना बनाता है पर फिटनेस को भी समझता है और एक संपूर्ण स्वस्थ जीवन शैली के लिए खाना बनाता है वह निश्चित ही ज़्यादा कमा पायेगा. आज एक गाड़ी में इतनी कंप्यूटिंग शक्ति मौजूद है की कार के डिजाइनरों को कंप्यूटर और डेटा विश्लेषण की जानकारी होना अनिवार्य हो गया है.

आने वाले सालों में ऐसी समझ की ज़रुरत बड़ेगी जब स्वचालित गाड़ियाँ, जिनमें कहीं ज़्यादा कंप्यूटर लगे होंगे, अत्यधिक मात्रा में डाटा उत्पन्न करेंगी, जिस डाटा का विश्लेषण कर गाड़ी के प्रदर्शन और क्षमता को और सुधारा जा सकता है. मानव-मशीन बुद्धिमता को जोड़, डाटा में प्रतिमान ढूंढ पाना (finding patterns in the data) और दो असमंधित प्रतीत होते विषयों को जोड़ समस्याओं के नवीन समाधान ढूंढ पाना, ऐसी काबलियत की माँग आने वाले दशकों में अत्यधिक बढ़ेगी.

आने वाले समय में आप शायद कभी रिटायर नहीं होंगे और बहुत लम्बे अरसे तक काम करते रहेंगे. रहने की बेहतर परिस्तिथियाँ और चिकित्सा में सुधार हमारे जीवन काल को बढ़ा रहे हैं. इसका मतलब है की हमारा जीवन लम्बा होगा और इसलिए हमें लम्बे अरसे तक काम भी करना पड़ेगा.

एक नयी किस्म की वैश्विक अर्थव्यवस्था उभर रही है जिसको गिग इकॉनमी कहा जा रहा है. इस अर्थव्यवस्था में संविदात्मक (contractual) और फ्रीलान्स काम बढ़ रहा है और पारम्परिक नौकरियाँ कम हो रहीं हैं.

Freelance work also called gig economy

गिग शब्द संगीत की दुनिया से लिया गया है. संगीतकार फुल-टाइम नौकरी नहीं करते, एक कार्यक्रम से दूसरे कार्यक्रम में प्रदर्शन कर अपनी जीविका चलाते हैं. काम करने का यह प्रोजेक्ट-आधारित तरीका गिग इकोनॉमी में एक नया आदर्श बन सकता है. अच्छी खबर यह है कि हाइपर-कनेक्टिविटी आपको विश्व स्तर पर अपने ज्ञान, विशेषज्ञता, प्रतिभा या कौशल को बाजार में लाने की अनुमति देती है. परन्तु, गिग इकॉनमी में सफलता के लिए औसत काम नहीं करेगी. आप जो भी करते हैं, उस काम में आपको अति-उत्कृष्ट होना पड़ेगा, और थोड़ा जोखिम लेने की क्षमता भी विकसित करनी पड़ेगी. इस नयी अर्थव्यवस्था के नकारात्मक पक्ष भी हैं जैसे – आय में उतार-चढ़ाव, कोई कॉर्पोरेट बीमा नहीं, कोई सशुल्क छुट्टी नहीं, और कोई पेंशन नहीं. आने वाले समय में इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के साथ सहजता और वित्तीय साक्षरता (financial literacy) किसी भी प्रकार की नौकरी, उद्यम, या गिग इकॉनमी में फ्रीलान्स काम, सभी के लिए अनिवार्य हो जाएगी.

निष्कर्ष में, इतिहास बताता है कि जब भी कौशल, प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल नहीं रखते, तब परिणाम सामाजिक असमानता ही होता है. बदलते आर्थिक परिदृश्य से जूझने के लिए, हालांकि सरकारें नयी नीतियाँ सुझायेंगी, जैसे कुछ देश यूनिवर्सल बेसिक इनकम का प्रस्ताव रख रहें हैं, और सरकारें नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा निवारण (social safety net) दे रहीं हैं, खासकर उन लोगों को जो कम-कौशल, कम वेतन वाले चक्रव्यूह में फँसनें कि ज़्यादा सम्भावना रखते हैं, आपको विचार करना है कि क्या चौथी औद्योगिक क्रांति जो अभूतपूर्व परिवर्तन ला रही है, वह आपके लिए एक चुनौती बन जाएगा, या आप नए कौशल सीख आने वाले सुनहरे अवसरों का पूरा लाभ उठा पायेंगे.